महाभारत के साक्षी हैं देव कमरूनाग

    Author: naresh Genre: »
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    कमरूनाग झील हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध झीलों में से एक है। यह झील मंडी घाटी की तीसरी प्रमुख झील है। यहाँ पर कमरूनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी है, जहाँ जून माह में विशाल मेले का आयोजन होता है।
    • हिमाचल प्रदेश के मंडी नगर से 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित 'कमरूनाग झील' समुद्र के तल से लगभग नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है।
    • देवदार के घने जंगलों से घिरी यह झील प्रकृति प्रेमियों को अभिभूत कर देती है।
    • झील तक पहुँचने का रास्ता भी बहुत सुरम्य है और यहाँ के लुभावने दृश्यों को देखकर पर्यटक अपनी सारी थकान भूल जाता है।
    • कमरूनाग झील के किनारे पहाड़ी शैली में निर्मित कमरूनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी है, जहाँ पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। प्रत्येक वर्ष जून माहमें यहाँ भारी मेला लगता है।
    • करसोग से शिमला की ओर जाते हुए मार्ग में 'तत्तापानी' नामक खूबसूरत स्थल है। यह स्थल सल्फर युक्त गरम जल के चश्मों के लिए मशहूर है। एक ओर बर्फ की तरह सतलुज का ठंडा जल अगर शरीर को सुन्न कर देता है तो वहीं इस नदी के आगोश से फूटता गरम जल पर्यटकों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।
    • सोने-चांदी के जेवर झील को अर्पित
      आषाढ़ माह के पहले दिन कमरूनाग मंदिर में सरानाहुली मेले का आयोजन होता है। मेले के दौरान मंडी जिला के बड़ादेव कमरूनाग के प्रति आस्था का महाकुंभ उमड़ता है। दूर-दूर से लोग मनोकामना पूरी होने पर झील में करंसी नोट चढ़ाते हैं। महिलाएं अपने सोने-चांदी के जेवर झील को अर्पित कर देती हैं। देव कमरूनाग के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि झील में सोना-चांदी और मुद्रा अर्पित करने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह झील आभूषणों से भरी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि झील में अरबों के जेवर हैं। समुद्र तल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित झील में अरबों की दौलत होने के बावजूद सुरक्षा का कोई खास प्रबंध नहीं है। यहां पर सामान्य स्थितियों जितनी सुरक्षा भी नहीं है। लोगों की आस्था है कि कमरूनाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। देव कमरूनाग मंडी जिला के सबसे बड़े देव हैं। उनके प्रति आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके मंडी नगर में पहुंचने के बाद ही अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि मेले का शुभारंभ होता है।
    • जानकार कहते हैं कि सन् 1911 में सीसी गारवेट मंडी राज्य के अंगे्रज अधिकारी ने कमरूनाग की प्रसिद्धि की बातें सुनने पर इस क्षेत्र का दौरा किया था। उसने जब लोगों को झील में अमूल्य वस्तुएं फैंकते हुए देखा तो उसने अंग्रेजी हुकूमत की संचय प्रणाली प्रवृत्ति से सोचा कि लोग व्यर्थ में ही इतना धन एवं कीमती वस्तुएं/जेवरात झील में फैंकते हैं, क्यों न इस झील से सारा धन निकाल कर राज्य कोष में डाल कर इसका सदुपयोग किया जाए। राजा ने भी बात मान ली परंतु पुजारी व भक्तों ने इसका कड़ा विरोध करके इस राय को अस्वीकार कर दिया।विरोध करने पर भी राजा और अंग्रेज अधिकारी अपने कार्यकर्ताओं सहित झील की ओर चल पड़े। झील की तरफ चलते ही भयंकर बारिश शुरू हो गई। उन्हें बारिश ने एक कदम भी चलने नहीं दिया। मजबूर होकर उन्हें चच्योट में ही रुकना पड़ा। वहां अंग्रेज अधिकारी ने फल खाया और वह बीमार पड़ गया और उसे खून के दस्त लग गए। लोगों ने जब उन्हें कमरूनाग की शक्ति के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी तो वे घबरा गए। अंग्रेज अधिकारी सीसी गारवेट को वापस लौटना पड़ा और वह सीधा इंगलैंड जाने के लिए मजबूर हो गए।


    • जिला की कमरूनाग झील के अपार नैसर्गिक सौंदर्य को निहारने से पर्यटक सुविधाओं के अभाव में अभी भी वंचित है। कमरूनाग घाटी के अपार सौंदर्य को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए सरकार को कार्य करना चाहिए। हाल ही में मंडी से मनीष देव मोहन, कमल सैणी, रंगारंग सिंह, विनोद भावुक और समीर कश्यप ने रोहांडा से होते हुए कमरूनाग झील की ट्रेकिंग करने के बाद लौटने पर उन्होने अपने संस्मरण में बताया कि कमरूनाग झील की खूबसूरती ने केवल प्रदेश व देश भर के पर्यटकों और ट्रैकरों को आकर्षित करती है। बल्कि इस स्थल का एक धार्मिक और पुरातन महत्व भी है। समुद्रतल से 3334 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कमरूनाग झील तक पहुंचने के लिए अभी तक सडक मार्ग की सुविधा नहीं है ऐसे में यहां तक पहुंचने के लिए पैदल यात्रा करनी पडती है। कमरूनाग झील तक पहुंचने के लिए रोहांडा, धन्यारा गलू, चौकी-पंडार, जंजैहली, शिकारी और जाछ से रास्ते हैं। अपने संस्मरणों में उन्होने बताया कि यात्रा शुरू होने वाले स्थानों पर लोगों के ठहरने की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। जिससे लोगों को परेशानी न उठानी पडे। इस ट्रैक के रास्ते को चिन्हित करके ठीक किया जाना चाहिए। हालांकि कमरूनाग मंदिर कमेटी की ओर से मंदिर की सीमा के भीतर के रास्तों को पक्का किया गया है लेकिन बाकि का करीब 9 किलोमीटर रास्ता अभी भी पुराने समय से चला आ रहा है और काफी खराब हालत में है। सरकार को इस ट्रैक रूट को ठीक करना चाहिए और रास्ते में पानी की सुविधा और विश्राम के लिए उचित स्थल बना कर इनका रखरखाव सुनिश्चित करना चाहिए। ट्रैकिंग के दौरान रई, तोष, बान और देवदार के सघन जंगल हैं। लेकिन नये जंगल विकसित नहीं किये जा रहे हैं। वहीं पर इन जंगलों में अनेकों जडी-बूटियां मौजूद हैं जिनकी शिनाखत नहीं होने के कारण इनके अनेकों फायदे से वंचित हैं। इन जडी-बूटियों की शोध की जानी चाहिए। मंदिर कमेटी के इंदर सिंह और राकेश कुमार ने बताया कि महाभारत की कथा में बर्बरीक ही कमरूनाग हैं। जिन्हे स्थानीय लोग बडा देयो भी कहते हैं। महाभारत के अनुसार बर्बरीक भीम के पोते और घटोत्कच और मौरया के बेटे थे। देव कमरूनाग देव कमरूनाग का मंदिर राजस्थान के सीकर जिला में खाटु श्यामजी के नाम प्रसिध है। राजस्थान से भी भारी संखया में लोग कमरूनाग मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। बडा देयो कमरूनाग को मंडी जनपद में बारिश का देवता भी कहते हैं। मंदिर में जून माह में सरानौहली मेले में हजारों श्रधालु यहां पहुंच कर बडा देयो का आर्शीवाद लेते हैं। हालांकि मंदिर कमेटी की ओर से यहां पर सराय की व्यवस्था है लेकिन प्रशासन को भी इस स्थल के महत्व को देखते हुए यहां पर पहुंचने वाले लोगों के लिए रहने और भंडारे की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

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