हिडिम्बा मंदिर

    Author: naresh Genre: »
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    यह समुद्र तल से 1533 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.यह भीम की पत्नी हिरमा देवी जिससे हम देवी हिडिम्बा के नाम परिचित है, को समर्पित सुंदर मंदिर है जो देवदार के घने-लम्बे वृक्षों के बीच बना है. ऐसी मान्यता है कि देवी हिडिम्बा इस स्थान पर अपने भाई हिडिम्ब दैत्य के साथ रहती थी. हिडिम्बा का प्रण था कि जो भी उनके भाई हिडिम्ब को हरा देगा, वो उससे शादी करेंगी. पाण्डंव अपने वनवास के दौरान यहां आए तो हिडिम्ब और भीम के बीच लड़ाई हो गई जिसमें हिडिम्ब मारा गया.
    हिडिम्बा ने अपने प्रण के मुताबिक भीम से शादी कर ली और हिडिम्बा ने घटोत्कच नाम के लड़के को जन्म दिया. घटोत्कच महाभारत के युद्ध में पांडवों की तरफ से लड़ते हुए कर्ण से भिड़ गया. कर्ण के पास इंद्र द्वारा दिया गया एक अमोघ शस्त्र था जो अर्जुन को मारने के लिए बचा के रखा हुआ था. और इसी अमोघ अस्त्र को अर्जुन पर चलाने की याद दिलाने हेतु उस रोज कर्ण का सारथी स्वयम दुर्योधन बना था.

    श्री कृष्ण ने ये सारी चालें भांप कर उस दिन के युद्ध मे अंत समय मे फ़ेर बदल करते हुये अर्जुन की जगह घटोत्कच को कर्ण के सम्मुख युद्ध मे खडा कर दिया. घटोत्कच मायावी युद्ध मे प्रवीण था और घटोत्कच ने कौरव सैना को काफी नुकसान पहुंचा दिया था. जब कर्ण और दुर्योधन को जान के लाले पडे तब दुर्योधन ने कर्ण से वह अमोघ अस्त्र घटोत्कच पर चलाने के लिये कहा. कर्ण ने के यह कहने पर कि वो तो अर्जुन को मारने के लिये रखा है? तब दुर्योधन ने कहा कि अर्जुन को तो तब मारेंगे ना, जब आज यह घटोत्कच हमको जिंदा लौटने देगा. आप तो वो शक्ती इस पर जल्दी चलाओ वर्ना हम दोनों आज मारे जायेंगे.

    इसी लिए कर्ण ने अमोघ शस्त्र घटोत्कच पर चला दिया और घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हो गया. और एक तरह से यहीं पर इसी दिन महाभारत युद्ध की तकदीर तय हो गई थी. इन्ही घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे जिन्होने महाभारत युद्ध का निर्णय दिया था और आज कल राजस्थान के सीकर जिले मे खाटू श्याम जी के नाम से पूजे जाते हैं जहां उन पर लाखों लोगों की श्रद्धा और विश्वास कायम है.

    मंदिर में उत्कीर् यंकरी लिपि के एक अभिलेख के अनुसार इसका निर्माण सन् 1553 ई. में राजा बहादुर सिहं ने करवाया था. पैगाड़ा शैली में निर्मित मंदिर की ऊँचाई आधार से लगभग 80 फीट है और यह तीनों और से 12 फीट ऊँचाई वाले संकरे बरामदे से घिरा है. इसकी काष्ठ निर्मित छत चार भागों में बनती है, जिसमें ऊपरी भाग गोलाकार है जो कि कांस्य कलश एवं त्रिशुल से सजा है.वर्गाकार गर्भगृह में हिडिम्बा देवी की कांस्य निर्मित सुंदर प्रतिमा देख सकते हैं. इस मंदिर को बनाने में ज्यादातर लकड़ी और पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. चतुस्थरीय प्रवेश द्वार विभिन्न देवी-देवताओं तथा बेल-बूटों,घट-पल्लव अभिप्राय,पशु जैसे हाथी,मकर इत्यादि के अकंन से सज्जित है.

    प्रवेश द्वार के दांयी ओर महिषासुर मर्दिनी हाथ जोड़े भक्त तथा नंदी पर आसीन उमा महेश्वर और बांई ओर दुर्गा, हाथ जोड़े भक्त तथा गरूड़ पर आसीन लक्ष्मी और नारायण को दर्शाया गया है. ललाट बिम्ब पर गणेश तथा उसके उपर शहतीर पर नवगृहों का अकंन हैं. सबसे ऊपरी भाग में बौद्ध आकृतियां उकेरी गई हैं.

    इस मंदिर को देखकर 1553 ई के समय की कला के दर्शन होते हैं. कुल्लू-मनाली में इनको सबसे शक्तिशाली देवी दुर्गा व काली का अवतार मानते हैं. मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति स्थापित है और माता के चरण पादुका भी है जिनकी प्रतिदिन पूजा होती है. इस मंदिर के थोड़ी सी दूरी पर वो वृक्ष भी है जहां घटोत्कच तपस्या करता था और पशुओं की बली देता था.

    पूरे भारत में किसी राक्षसी का यह एक मात्र मंदिर है. हिडिम्बा जन्म से राक्षसी थी लेकिन तप, त्याग और पतिव्रत धर्म से देवी मानी गईं है. इसी कारण से कुल्लू -मनाली के प्रसिद्ध धार्मिक मेले दशहरे में हिडिम्बा का शामिल होना जरुरी माना जाता है. हिडिम्बा को शामिल हुए बिना मेला पूर्ण नहीं माना जाता है. कुल्लू के राजा इन्हें दादी मां मानते हैं . दशहरे के समापन में भैंसे सहित अष्टांग बलियां भी दी जाती हैं[?] इस मंदिर के विशिष्ट पुरातात्विक एवं वास्तुशिल्प विशेषताओं और इस के पुरातात्विक महत्व के कारण भारत सरकार ने प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल के रूप में इसे स्वीकार कर लिया है.

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