जुलाई-अगस्त के दौरान पवित्र मणिमहेश झील हजारों तीर्थयात्रियों से भर जाता है। यहीं पर सात दिनों तक चलने वाले मेला का आयोजन भी किया जाता है। यह मेला जन्माष्टमी के दिन समाप्त होता है। जिस तिथि को यह उत्सव समाप्त होता है उसी दिन भरमौर के प्रधान पूजारी मणिमहेश डल के लिए यात्रा प्रारंभ करते हैं। यात्रा के दौरान कैलाश चोटि (18,556) झील के निर्मल जल से सराबोर हो जाता है। कैलाश चोटि के ठीक नीचे से मणीमहेश गंगा का उदभव होता है। इस नदी का कुछ अंश झील से होकर एक बहुत ही खूबसूरत झरने के रूप में बाहर निकलती है। पवित्र झील की परिक्रमा (तीन बार) करने से पहले झील में स्नान करके संगमरमर से निर्मित भगवान शिव की चौमुख वाले मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। कैलाश पर्वत की चोटि पर चट्टान के आकार में बने शिवलिंग का इस यात्रा में पूजा की जाती है। अगर मौसम उपयुक्त रहता है तो तीर्थयात्री भगवान शिव के इस मूर्ति का दर्शन लाभ लेते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार कैलाश उनकी अनेक आपदाओं से रक्षा करता है, यही वजह है कि स्थानीय लोगों में महान कैलाश के लिए काफी श्रद्धा और विश्वास है। यात्रा शुरू होने से पहले गद्दी वाले अपने भेड़ों के साथ पहाड़ों पर चढ़ते हैं और रास्ते से अवरोधकों को यात्रियों के लिए हटाते हैं। ताकि यात्रा सुगम और कम कष्टप्रद हो। कैलाश चोटि के नीचे एक बहुत बड़ा हिमाच्छादित मैदान है जिसको भगवान शिव के क्रीड़ास्थल 'शिव का चौगान' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान शिव और देवी पार्वती क्रीड़ा करते हैं। वहीं झील के कुछ पहले जल का दो स्रोत है। इसको शिव क्रोत्रि और गौरि कुंड के नाम से जाना जाता है।