शीत मरुस्थलीय क्षेत्र जिला किन्नौर के 3,660 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नाको झील विशेष कर विदेशी पर्यटकों व बौद्ध भिक्षुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। गर्मियों में हजारों देशी व विदेशी पर्यटक इस झील तक पहुंच कर यहां की शांत आबोहवा में अपनी थकान मिटा कर सुकून महसूस करते हैं|इस प्राकृतिक झील का इतिहास बौद्ध धर्म से जुड़ा होने के कारण प्रति वर्ष कई बौद्ध भिक्षु भी यहां पंहुच कर पूजा-अर्चना करते हैं। पौराणिक कथाआें, मान्यताओं व दंत कथाओं के अनुसार नाको झील का इतिहास सातवीं शताब्दी के महान बौद्ध धर्मगुरु पद्मसंभव काल से बताया जाता है। धार्मिक दृष्टि से नाको झील की मान्यता हिमाचल प्रदेश के रिवालसर झील जैसी है। प्रति वर्ष गर्मियों के दौरान देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ—साथ बौद्ध भिक्षुओं के यहां आने से चहल—पहल बढ़ जाती है, लेकिन सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र का न्यूनतम तापमान माइनस 10 डिग्री से माइनस 25 डिग्री तक नीचे चले जाने से पर्यटकों को इस झील तक पहुंचना नामुमकिन हो जाता है। सर्दियों के दौरान नाको झील पूरी तरह से जम कर शीशे की तरह हो जाती है। क्षेत्र में अत्यधिक ठंड के चलते यहां की संपर्क सड़कों पर भी बर्फ की परत जमने के साथ—साथ सड़कें पूरी तरह जम कर शीशे की तरह हो चुकी होती हैं। सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र में आवाजाही करना आसान नही रहता। दिसंबर माह से मार्च तक नाको झील के जमने से इस झील पर स्थानिय बच्चे आइस स्केटिंग का भी आनंद उठाते हैं।