चम्बा के संस्थापक राजा साहिल वर्मा ने सन् 920 में इस शहर का नामकरण अपनी बेटी चंपा के नाम पर क्यों किया था, इस बारे में एक बहुत ही रोचक किंवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि राजकुमारी चंपावती बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और नित्य स्वाध्याय के लिए एक साधु के पास जाया करती थीं। एक दिन राजा को किसी कारणवश अपनी बेटी पर संदेह हो गया।
शाम को जब साधु के आश्रम में बेटी जाने लगी तो राजा भी चुपके से उसके पीछे हो लिया। बेटी के आश्रम में प्रवेश करते ही जब राजा भी अंदर गया तो उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया। लेकिन तभी आश्रम से एक आवाज गूँजी कि उसका संदेह निराधार है और अपनी बेटी पर शक करने की सजा के रूप में उसकी निष्कलंक बेटी छीन ली जाती है।साथ ही राजा को इस स्थान पर एक मंदिर बनाने का आदेश भी प्राप्त हुआ। चंबा नगर के ऐतिहासिक चौगान के पास स्थित इस मंदिर को लोग चमेसनी देवी के नाम से पुकारते हैं। वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर अद्वितीय है। इस घटना के बाद राजा साहिल वर्मा ने नगर का नामकरण राजकुमारी चंपा के नाम कर दिया, जो बाद में चम्बा कहलाने लगा।
डच विद्वान डॉ. बोगल ने चम्बा को यूँही 'अचंभा' नहीं कह डाला था और सैलानी भी यूँ ही इस नगरी में नहीं खिंचे चले आते हैं। हिमाचलप्रदेश स्थित चम्बा की वादियों में कोई ऐसा सम्मोहन जरूर है जो सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है और वे बार-बार यहाँ दस्तक देने को लालायित रहते हैं।
यहाँ मंदिरों से उठती धार्मिक गीतों की स्वरलहरियाँ जहाँ परिवेश को आध्यात्मिक बना देती हैं, वहीं रावी नदी की मस्त रवानगी और पहाड़ों की ओट से आते शीतल हवा के झोंके सैलानी को ताजगी का अहसास कराते हैं।
चम्बा में कदम रखते ही इतिहास के कई वर्क परिंदों के पंखों की तरह फड़फड़ाने लगते हैं और यहाँ की प्राचीन प्रतिमाएँ संवाद को आतुर हो उठती हैं। चम्बा की खूबसूरत वादियों को ज्यों-ज्यों हम पार करते जाते हैं, आश्चर्यों के कई नए वर्क हमारे सामने खुलते चले जाते हैं और प्रकृति अपने दिव्य सौंदर्य की झलक हमें दिखाती चलती है।
शाम को जब साधु के आश्रम में बेटी जाने लगी तो राजा भी चुपके से उसके पीछे हो लिया। बेटी के आश्रम में प्रवेश करते ही जब राजा भी अंदर गया तो उसे वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया। लेकिन तभी आश्रम से एक आवाज गूँजी कि उसका संदेह निराधार है और अपनी बेटी पर शक करने की सजा के रूप में उसकी निष्कलंक बेटी छीन ली जाती है।साथ ही राजा को इस स्थान पर एक मंदिर बनाने का आदेश भी प्राप्त हुआ। चंबा नगर के ऐतिहासिक चौगान के पास स्थित इस मंदिर को लोग चमेसनी देवी के नाम से पुकारते हैं। वास्तुकला की दृष्टि से यह मंदिर अद्वितीय है। इस घटना के बाद राजा साहिल वर्मा ने नगर का नामकरण राजकुमारी चंपा के नाम कर दिया, जो बाद में चम्बा कहलाने लगा।
डच विद्वान डॉ. बोगल ने चम्बा को यूँही 'अचंभा' नहीं कह डाला था और सैलानी भी यूँ ही इस नगरी में नहीं खिंचे चले आते हैं। हिमाचलप्रदेश स्थित चम्बा की वादियों में कोई ऐसा सम्मोहन जरूर है जो सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है और वे बार-बार यहाँ दस्तक देने को लालायित रहते हैं।
यहाँ मंदिरों से उठती धार्मिक गीतों की स्वरलहरियाँ जहाँ परिवेश को आध्यात्मिक बना देती हैं, वहीं रावी नदी की मस्त रवानगी और पहाड़ों की ओट से आते शीतल हवा के झोंके सैलानी को ताजगी का अहसास कराते हैं।
चम्बा में कदम रखते ही इतिहास के कई वर्क परिंदों के पंखों की तरह फड़फड़ाने लगते हैं और यहाँ की प्राचीन प्रतिमाएँ संवाद को आतुर हो उठती हैं। चम्बा की खूबसूरत वादियों को ज्यों-ज्यों हम पार करते जाते हैं, आश्चर्यों के कई नए वर्क हमारे सामने खुलते चले जाते हैं और प्रकृति अपने दिव्य सौंदर्य की झलक हमें दिखाती चलती है।