सरकाघाट से चार किलोमीटर दूर माता नवाही
देवी का भव्य मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर में प्रदेश से ही नहीं, अपितु बाहरी राज्यों से भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु पूजा - अर्चना कर मन्नतें मांगते हैं। मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। खुदाई के दौरान मिली पत्थर की शिलाएं मंदिर परिसर में देखी जा सकती हैं। यह मंदिर 13 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। कहते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व यहां पर वीरान व घना जंगल हुआ करता था। जंगली जानवर बड़ी संख्या में हुआ करते थे। आसपास की आबादी नाममात्र थी। चूडि़यां बेचने वाले बंजारे को इस स्थान पर एक छोटी सी लड़की मिली।
लड़की ने आवाज दी, ओ बंजारे मुझे भी चूडि़यां पहना दे, जब बंजारा लड़की को चूडि़यां पहनाने लगा तो उस अद्भुत कन्या ने एक - एक करके नौ भुजाएं आगे बढ़ाईं। इससे बंजारा हतप्रभ रह गया। कन्या ने बंजारे से कहा कि घबराओ मत, मैं नवदुर्गा नवाही माता हूं। लड़की ने चूडि़यों के बदले कुछ पत्थर बंजारे को दिए। बंजारा जब घर पहुंचा तो उसने देखा कि वे पत्थर सोने के रूप में परिवर्तित हो गए। बंजारे ने लोगों से इस घटना का जिक्र किया तो गांव के लोगों ने इकट्ठे होकर नवाही मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि मुगलों के शासन में क्रूर मुस्लिम लुटेरे महमूद गजनवी ने इस मंदिर पर चढ़ाई की। उसने जब मंदिर को तोड़ने और लूटने का प्रयास किया तो भगवती ने पत्थरों के गोले बरसाए। गजनवी को सेना समेत भागना पड़ा था। नवरात्र मेलों में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है। हर वर्ष आषाढ़ संक्रांति को यहां पर तीन दिन का मेला लगता है।
नई फसल आने पर लोग फसल के रोट पकवान मंदिर में चढ़ाते हैं
तथा अन्न ग्रहण करते हैं। कहा जाता है कि 1951 - 52 में मंडी के राजा ने मेले को बंद किया , जिससे राजा तत्काल अंधा हो गया था। पुरोहित ने राजा को कहा कि मां की नाराजगी से आपका यह हाल हुआ है। राजा ने माता के दरबार में जाकर माफी मांगी और चरण का पानी आंखों पर लगाया। ऐसा करते ही राजा की आंखों की रोशनी वापस आ गई।
जय माता दी....
source: Sarkaghat facebook group
देवी का भव्य मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। मंदिर में प्रदेश से ही नहीं, अपितु बाहरी राज्यों से भी हजारों की तादाद में श्रद्धालु पूजा - अर्चना कर मन्नतें मांगते हैं। मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। खुदाई के दौरान मिली पत्थर की शिलाएं मंदिर परिसर में देखी जा सकती हैं। यह मंदिर 13 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। कहते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व यहां पर वीरान व घना जंगल हुआ करता था। जंगली जानवर बड़ी संख्या में हुआ करते थे। आसपास की आबादी नाममात्र थी। चूडि़यां बेचने वाले बंजारे को इस स्थान पर एक छोटी सी लड़की मिली।
लड़की ने आवाज दी, ओ बंजारे मुझे भी चूडि़यां पहना दे, जब बंजारा लड़की को चूडि़यां पहनाने लगा तो उस अद्भुत कन्या ने एक - एक करके नौ भुजाएं आगे बढ़ाईं। इससे बंजारा हतप्रभ रह गया। कन्या ने बंजारे से कहा कि घबराओ मत, मैं नवदुर्गा नवाही माता हूं। लड़की ने चूडि़यों के बदले कुछ पत्थर बंजारे को दिए। बंजारा जब घर पहुंचा तो उसने देखा कि वे पत्थर सोने के रूप में परिवर्तित हो गए। बंजारे ने लोगों से इस घटना का जिक्र किया तो गांव के लोगों ने इकट्ठे होकर नवाही मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि मुगलों के शासन में क्रूर मुस्लिम लुटेरे महमूद गजनवी ने इस मंदिर पर चढ़ाई की। उसने जब मंदिर को तोड़ने और लूटने का प्रयास किया तो भगवती ने पत्थरों के गोले बरसाए। गजनवी को सेना समेत भागना पड़ा था। नवरात्र मेलों में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है। हर वर्ष आषाढ़ संक्रांति को यहां पर तीन दिन का मेला लगता है।
नई फसल आने पर लोग फसल के रोट पकवान मंदिर में चढ़ाते हैं
तथा अन्न ग्रहण करते हैं। कहा जाता है कि 1951 - 52 में मंडी के राजा ने मेले को बंद किया , जिससे राजा तत्काल अंधा हो गया था। पुरोहित ने राजा को कहा कि मां की नाराजगी से आपका यह हाल हुआ है। राजा ने माता के दरबार में जाकर माफी मांगी और चरण का पानी आंखों पर लगाया। ऐसा करते ही राजा की आंखों की रोशनी वापस आ गई।
जय माता दी....
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