हम आपको एक ऐसी रहस्यमयी झील के बारे में बताने जा रहे है। जिसके गर्भ में अरबों की करंसी ,सोना चांदी और सिक्के छुपे हुए है। अगर आपको कोई जेब से दस, बीस, सौ, पांच सौ, और हजार का नोट निकाल कर पानी में फेंकता नजर आए या फिर गहनों से लकदक सजी धजी सुहागिन अपने जेबरों को एक एक करके जिस्म से उतार कर पानी के हवाले करती दिखे तो यह आपके लिए आश्चर्य या फिर आखों पर विश्वास न करने जैसी बात होगी। सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले की कमरू घाटी में समुद्रतल से 9 हज़ार फीट की ऊँचाई पर देवदार के घने जंगलों के बीच में स्थित झील कमरुनाग पहुचने वाले श्रद्धालु को मन्नत मांगनी हो या पूरी हो चुकी हो दोनों ही स्थिति में सोने चांदी के गहने ,प्रतिमाएं ,करंसी व सिक्के जो भी हो इस झील में डालते है ऐसा देव कमरुनाग को खुश करने के लिए किया जाता है।
कहा जाता है कि महाभारत युद्ध खत्म होने के उपरांत पांडवों ने सारा खजाना बबरुभान को अर्पण कर दिया था ,जिसे इस झील में डाला गया है। इस झील का एक सिरा धरती पर तो दूसरा सिरा पाताल में है, ऐसे में यह झील पाताल तक खजाने से भरी हुई है। ये भी कहा जाता है कि ये देवताओं का खजाना है, इसलिए लोग यहां आकर पूजा-अर्चना भी करते हैं। झील घने जंगल में है और ठंड के दिनों में यहां इतनी बर्फ होती है कि कोई भी पुजारी नहीं होता। फिर भी यह सुरक्षित है। यहां से कोई भी इस खजाने को चुरा नहीं सकता। आज तक जिसने भी इस खजाने को चुराने का प्रयास किया उसके हाथ कीचड़ ही आया या वो वहीं अंधा हो गया, जबकि खजाना झील में साफ़-साफ़ दिखाई देता है।
यह भी कहा जाता है कि इस झील में सोना-चांदी चढ़ाने से मन्नत पूरी होती है। लोग अपने शरीर का कोई भी गहना यहां चढ़ा देते हैं। झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना – चांदी कभी भी झील से निकाला नहीं जाता, क्योंकि ये देवताओं का होता है। हर साल 14 और 15 जून को देवता भक्तों को दर्शन देते हैं। यहां विशाल जनसमूह एकत्रित होता है। ऐसी मान्यता है कि अच्छा वर व संतान प्रप्ती के लिए यहां देवता से मन्नत मांगी जाती है और मन्नत पूरी होने पर लोग अपने शरीर के आभूषण इस झील में डाल देते हैं। पहाड़ों में लोग देवताओं पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं और देवता उनकी सुनते भी हैं।
नरेन्द्र राजपूत
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