हिमाचल वास्तव में ही हिम का घर है। हिमपात के साथ यहाँ सीधे तौर पर जीवन की सुख-समृद्धि जुड़ी हुई है। पर्यटन हिमाचल का प्रमुख उद्योग है और यहाँ के सभी प्रमुख पर्यटन स्थलों पर सर्दियों में हिम की मोटी तह जमती है। हिमपात के लिहाज से हिमाचल में जो सबसे प्रसिद्ध सर्कल है उसमें कसौली से शिमला होते हुए मनाली, धर्मशाला और डलहौजी को जोड़ा गया है।
सर्दियों के दौरान यह सभी जगहें हिम की सफेद चादर में लिपटी रहती हैं। कसौली चंडीगढ़ से मात्र डेढ़ घंटे की दूरी पर है और अक्सर ऐसा होता है कि यहाँ बर्फबारी की सूचना मिलने के बाद चंडीगढ़ और आस-पास के लोग यहाँ पहुँच कर हिमपात का आनंद उठाते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के समय से कसौली छावनी क्षेत्र रहा है लिहाजा अभी भी यहाँ ज्यादा निर्माण नहीं होने के कारण इसकी खूबसूरती बरकरार है।
कसौली से दो घंटे के सफर के बाद शिमला पहुँचा जा सकता है। अंग्रेजों की यह ग्रीष्मकालीन राजधानी आज भी बर्फ और खासकर ठंड का पर्याय मानी जाती है। करीब सात हजार फुट की ऊँचाई पर बसे इस शहर का नजारा हिमपात के बाद देखते ही बनता है।
हालाँकि यहाँ स्नो लाइन नजदीक नहीं है फिर भी जनवरी में यहाँ मुख्य शहर में ही दो से तीन फुट बर्फ गिरती है जबकि कुफरी जैसे आस-पास के इलाकों में दिसंबर से मार्च तक बर्फ जमी रहती है जो सैलानियों के लिए आकर्षण बनी रहती है। शिमला राज्य की राजधानी होने के कारण हर तरह कि सुविधा से लैस है और यहाँ तीन सौ रुपए से लेकर दस हजार तक के रेंज के होटल उपलब्ध हैं।
पर्यटकों के लिए हिमपात के दिनों में यहाँ स्केटिंग मुख्य आकर्षण रहता है। यहाँ पर 1920 में स्थापित एशिया का सबसे पुराना और अब एकमात्र ओपन एयर स्केटिंग रिंग है जिसमें प्राकृतिक तौर पर पानी जमाकर स्केटिंग करवाई जाती है। इसके अलावा यहाँ पर एशिया का सबसे ऊँचा गो-कर्ट ट्रैक भी है।
स्कीइंग वाली ऊँचाई पर गो-कार्टिंग का अपना अलग ही मजा है। हाँ, एक खास बात यह कि यदि आप यहाँ हिमपात के दिनों में आ रहे हैं तो कालका-शिमला के बीच चलने वाली छुक-छुक रेल में जरूर बैठें। विश्व धरोहर का दर्जा हासिल कर चुकी इस रेल लाइन पर हिमपात के दौरान सफर करने का अपना अलग ही आनंद है जो बरसों जेहन में समाया रहता है।
शिमला यदि ऐसे लोगों की पसंद है जिनके पास समय कि कमी रहती है तो मनाली उन पर्यटकों को लुभाता है जो लंबे समय तक प्रकृति की गोद में रहकर हिमपात का आनंद लेना चाहते हैं। खास तौर पर मनाली हनीमून पर जाने वालों की पहली पसंद है।
हर साल यहाँ हिमपात के दिनों में विशेष तौर पर ऐसे जोड़ों की बहार रहती है जो या तो विवाहित जीवन शुरू कर रहे होते हैं या फिर विशेष तौर पर शादी के बाद का वैलेनटाइंस डे मनाने स्नो प्वांइट पर आते हैं। यहाँ की सोलंग घाटी में सर्दियों में आप एक साथ स्कीइंग के साथ-साथ पारा-ग्लाइडिंग का भी मजा ले सकते हैं। दोनों चीजें एक साथ एक जगह पर मिलना किसी वरदान से कम नहीं है।
मनाली से बेहद नजदीक स्थित है दुनिया के सबसे ऊँचे दर्रों मे से एक रोहतांग दर्रा। कोई भी मौसम हो आप यहाँ दो से तीन मीटर मोटी बर्फ की तह हमेशा देख सकते हैं। मनाली आने के लिए शिमला के अलावा सीधे चंडीगढ़ से भी जाया जा सकता है। दिल्ली से यहाँ के लिए नियमित रूप से सरकारी वाल्वो बसें चलती हैं जो शाम को चलकर सुबह आपको मनाली पहुँचा देती हैं।
आप चाहें तो हवाई मार्ग से भी मनाली आ सकते हैं। जहाज से हिम के लिहाफ में सोई कुल्लू घाटी का नजारा इतना मोहक दिखता है कि लगता है सफर और लंबा होना चाहिए था। मनाली के बाद हिमपात के नजरिए से जो शहर खास है वह है डलहौजी। पंजाब के आखिरी शहर पठानकोट से डलहौजी की दूरी साठ किलोमीटर है।
पठानकोट तक रेल या हवाई मार्ग से भी पहुँचा जा सकता है। डलहौजी बरतानवी काल से छावनी शहर है और सीमित निर्माण के चलते आज भी किसी अंग्रेजी शहर का आभास यहाँ आकर मिलता है। तीन पहाड़ियों पर बसे इस शहर में आप भले ही स्कीइंग जैसे बर्फबारी से जुड़े खेलों का आनंद नहीं ले सकते लेकिन यदि आप के पास समय है तो निश्चित तौर पर आप यहाँ से नई ऊर्जा हासिल कर लौटेंगे।
डलहौजी के बिलकुल साथ ही खजियार स्थित है। खजियार को भारत के मिनी स्विट्जरलैंड का दर्जा हासिल है। ऊंचे देवदारों से घिरे खजियार के मैदान पर बिछी बर्फ की मोटी चादर और बीच में स्थित छोटी सी झील किसी भी कवि के कल्पनालोक का अहसास करवाती है।
डलहौजी के अलावा धर्मशाला भी हिमपात के शौकीनों का पसंदीदा शहर है। हालाँकि यहाँ बर्फबारी अपेक्षाकृत कम होती है तथापि स्नो लाइन काफी नजदीक है। हाँ, धर्मशाला से मात्र सात किलोमीटर दूर बसे मैक्लॉडगंज मैं जमकर बर्फ गिरती है।
सर्दियों के दौरान यह सभी जगहें हिम की सफेद चादर में लिपटी रहती हैं। कसौली चंडीगढ़ से मात्र डेढ़ घंटे की दूरी पर है और अक्सर ऐसा होता है कि यहाँ बर्फबारी की सूचना मिलने के बाद चंडीगढ़ और आस-पास के लोग यहाँ पहुँच कर हिमपात का आनंद उठाते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के समय से कसौली छावनी क्षेत्र रहा है लिहाजा अभी भी यहाँ ज्यादा निर्माण नहीं होने के कारण इसकी खूबसूरती बरकरार है।
कसौली से दो घंटे के सफर के बाद शिमला पहुँचा जा सकता है। अंग्रेजों की यह ग्रीष्मकालीन राजधानी आज भी बर्फ और खासकर ठंड का पर्याय मानी जाती है। करीब सात हजार फुट की ऊँचाई पर बसे इस शहर का नजारा हिमपात के बाद देखते ही बनता है।
हालाँकि यहाँ स्नो लाइन नजदीक नहीं है फिर भी जनवरी में यहाँ मुख्य शहर में ही दो से तीन फुट बर्फ गिरती है जबकि कुफरी जैसे आस-पास के इलाकों में दिसंबर से मार्च तक बर्फ जमी रहती है जो सैलानियों के लिए आकर्षण बनी रहती है। शिमला राज्य की राजधानी होने के कारण हर तरह कि सुविधा से लैस है और यहाँ तीन सौ रुपए से लेकर दस हजार तक के रेंज के होटल उपलब्ध हैं।
स्कीइंग वाली ऊँचाई पर गो-कार्टिंग का अपना अलग ही मजा है। हाँ, एक खास बात यह कि यदि आप यहाँ हिमपात के दिनों में आ रहे हैं तो कालका-शिमला के बीच चलने वाली छुक-छुक रेल में जरूर बैठें। विश्व धरोहर का दर्जा हासिल कर चुकी इस रेल लाइन पर हिमपात के दौरान सफर करने का अपना अलग ही आनंद है जो बरसों जेहन में समाया रहता है।
शिमला यदि ऐसे लोगों की पसंद है जिनके पास समय कि कमी रहती है तो मनाली उन पर्यटकों को लुभाता है जो लंबे समय तक प्रकृति की गोद में रहकर हिमपात का आनंद लेना चाहते हैं। खास तौर पर मनाली हनीमून पर जाने वालों की पहली पसंद है।
हर साल यहाँ हिमपात के दिनों में विशेष तौर पर ऐसे जोड़ों की बहार रहती है जो या तो विवाहित जीवन शुरू कर रहे होते हैं या फिर विशेष तौर पर शादी के बाद का वैलेनटाइंस डे मनाने स्नो प्वांइट पर आते हैं। यहाँ की सोलंग घाटी में सर्दियों में आप एक साथ स्कीइंग के साथ-साथ पारा-ग्लाइडिंग का भी मजा ले सकते हैं। दोनों चीजें एक साथ एक जगह पर मिलना किसी वरदान से कम नहीं है।
मनाली से बेहद नजदीक स्थित है दुनिया के सबसे ऊँचे दर्रों मे से एक रोहतांग दर्रा। कोई भी मौसम हो आप यहाँ दो से तीन मीटर मोटी बर्फ की तह हमेशा देख सकते हैं। मनाली आने के लिए शिमला के अलावा सीधे चंडीगढ़ से भी जाया जा सकता है। दिल्ली से यहाँ के लिए नियमित रूप से सरकारी वाल्वो बसें चलती हैं जो शाम को चलकर सुबह आपको मनाली पहुँचा देती हैं।
आप चाहें तो हवाई मार्ग से भी मनाली आ सकते हैं। जहाज से हिम के लिहाफ में सोई कुल्लू घाटी का नजारा इतना मोहक दिखता है कि लगता है सफर और लंबा होना चाहिए था। मनाली के बाद हिमपात के नजरिए से जो शहर खास है वह है डलहौजी। पंजाब के आखिरी शहर पठानकोट से डलहौजी की दूरी साठ किलोमीटर है।
पठानकोट तक रेल या हवाई मार्ग से भी पहुँचा जा सकता है। डलहौजी बरतानवी काल से छावनी शहर है और सीमित निर्माण के चलते आज भी किसी अंग्रेजी शहर का आभास यहाँ आकर मिलता है। तीन पहाड़ियों पर बसे इस शहर में आप भले ही स्कीइंग जैसे बर्फबारी से जुड़े खेलों का आनंद नहीं ले सकते लेकिन यदि आप के पास समय है तो निश्चित तौर पर आप यहाँ से नई ऊर्जा हासिल कर लौटेंगे।
डलहौजी के बिलकुल साथ ही खजियार स्थित है। खजियार को भारत के मिनी स्विट्जरलैंड का दर्जा हासिल है। ऊंचे देवदारों से घिरे खजियार के मैदान पर बिछी बर्फ की मोटी चादर और बीच में स्थित छोटी सी झील किसी भी कवि के कल्पनालोक का अहसास करवाती है।
डलहौजी के अलावा धर्मशाला भी हिमपात के शौकीनों का पसंदीदा शहर है। हालाँकि यहाँ बर्फबारी अपेक्षाकृत कम होती है तथापि स्नो लाइन काफी नजदीक है। हाँ, धर्मशाला से मात्र सात किलोमीटर दूर बसे मैक्लॉडगंज मैं जमकर बर्फ गिरती है।