गरम पानी के स्त्रोतों के लिए मशहूर ,वशिष्ठ ,..जो कि मनाली से मात्र ३ किलो मीटर दूर है I ..यहाँ पे भगवान राम का मंदिर है I..यह स्थल देशी-विदेशी सैलानियों से भरा रहता है I...यह ऋषि वशिष्ठ कि तपोस्थली रही है I...यहाँ का गरम पानी शरीर के विकारों व् जोड़ों के दर्द से निजात दिलाता है I
वशिष्ठ के बारे में पौराणिक श्रुति इस प्रकार है कि वनवास के दौरान जब युद्ध में रामचन्द्र जी द्वारा रावण मार दिया गया तो रामचन्द्र पर ब्रह्महत्या का पाप लगा। अयोध्या वापस आने पर श्रीराम इस पाप के निवारण के लिये अश्वमेध यज्ञ को करने की तैयारी में जुट गये। यज्ञ शुरू हुआ तो उपस्थित सारे ऋषि मुनियों ने गुरू वशिष्ठ को कहीं नहीं देखा। वशिष्ठ राजपुरोहित थे, बिना उनके यह यज्ञ सफल नहीं हो सकता था। उस समय वशिष्ठ हिमालय में तपस्यारत थे। श्रंगी ऋषि लक्ष्मण को लेकर मुनि वशिष्ठ की खोज में निकल पडे। लम्बी यात्रा के बाद वे इसी स्थान पर आ पहुंचे। सर्दी बहुत थी। लक्ष्मण ने गुरू के स्नान के लिये गर्म जल की आवश्यकता समझी। लक्ष्मण ने तुरन्त धरती पर अग्निबाण मारकर गर्म जल की धाराएं निकाल दीं। प्रसन्न होकर गुरू वशिष्ठ ने दोनों को दर्शन देकर कृतार्थ किया। गुरू ने कहा कि अब यह धारा हमेशा रहेगी व जो इसमें नहायेगा, उसकी थकान व चर्मरोग दूर हो जायेंगे। लक्ष्मण ने गुरूजी को यज्ञ की बात बतलाई। तदुपरान्त गुरू वशिष्ठ ने अयोध्या जाकर यज्ञ को सुचारू रूप से सम्पन्न कराया।
वशिष्ठ मन्दिर लोक शैली में बना हुआ है। लकडियों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। मन्दिर के भीतर वशिष्ठ मुनि की काले रंग की भव्य आदमकद पाषाण मूर्ति है। वशिष्ठ मन्दिर के साथ रामचन्द्र जी का प्राचीनतम भव्य मन्दिर भी कुछ ही दूरी पर है। मन्दिर परम्परागत शैली में बना है। मन्दिर में लगी परिचय पट्टिका के अनुसार लगभग 4000 वर्ष पूर्व राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद उसका बडा पुत्र जनमेजय राजा बना। उसने पिता की आत्मा शान्ति हेतु तीर्थ यात्राएं कीं। उसने जगह जगह पर अपने कुल देवता रामचन्द्र जी के मन्दिर बनवाये व राम पंचायतें स्थापित कीं। यह मन्दिर तब का ही है।
एक ऐसा गांव है वशिष्ठ जो अपने दामन में पौराणिक स्मृति को छुपाये हुए है। महर्षि वशिष्ठ ने इसी स्थान पर बैठकर तपस्या की थी। कालान्तर में यह स्थल उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा। ऋषि का यहां प्राचीन मन्दिर है।
वशिष्ठ के नजदीक छोईड नाम का सुन्दर झरना है। इस झरने की विशेषता यह है कि लोग इसमें अपने बच्चों को मुण्डन हेतु यहां पर लाते हैं। प्रचलित धारणा है कि यहां मुण्डन कराने से बच्चों को प्रेत बाधा अथवा छाया से मुक्ति मिल जाती है। गांव के ठीक नीचे ब्यास और मनालसू नदियों का संगम भी आकर्षक है।
50 परिवारों का यह गांव वशिष्ठ भी कम दर्शनीय नहीं है। सभी मकान पुरानी कुल्लुई काठकुणी शैली के हैं जो बहुत सुन्दर व कलात्मक लगते हैं। लकडियों पर की गई मोहक पच्चीकारी आकर्षित करती है। यहां के सेब बगीचे भी मशहूर हैं। हर साल यहां बसन्त आगमन के साथ ही विरशु मेले का परम्परागत आयोजन होता है। सर्दी की ठिठुरन से निजात पाकर यहां के जनजीवन में एक नई स्फूर्ति और उल्लास का संचार होने लगता है। विरशु मेला इन्हीं खुशियों की सामाजिक अभिव्यक्ति है। इस मेले में चरासे तरासे नामक लोकनृत्य में जब महिलाएं नाचती हैं तो लास्य भाव बेहद मुग्ध करता है।
copied from: Himachali Culture Should alive
सशक्त समसामयिक आलेख |
मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"