जिला कुल्लू प्रांत का शाही स्थल नग्गर 1460 वर्षों तक यहां की राजधानी रहा। इस किले का निर्माण राजा सिद्ध सिंह ने सोलहवीं शताब्दी में करवाया था। इस किले के निर्माण में मजदूरों ने एक लंबी कतार बना कर किले के सभी पत्थरों को व्यास नदी के उस पार से गढ़ ढेक नामक राजा के महल दुर्गनुमा के खंडहरों से तकरीबन पांच किलोमीटर दूर से हाथों-हाथ नग्गर पहुंचाया गया। इन देवदार के दरवाजों की चौड़ाई व लंबाई स्पष्ट दर्शाती है कि किसी विशाल देवदारों के पेड़ों से तैयार किए गए हैं। इस किले की दीवारों में प्रयुक्त शहतीरों की लकड़ी पूरे के पूरे देवदारों के पेड़ों से काठ कुणी शैली के द्वारा महल तैयार किया गया है। नग्गर किला सत्रहवीं सदी के मध्य तक शाही महल तथा मुख्यालय के प्रयोग में लाया जाता रहा है। तत्पश्चात राजा जगत सिंह ने सुलतानपुर कुल्लू को अपनी राजधानी बनाया फिर भी 1846 ई. तक इस घराने के वंशज इस किले का प्रयोग ग्रीष्म कालीन महल के रूप में करते रहे हैं। इस किले में 1947 तक अंग्रेज लोग अदालती कार्यवाही भी करते रहे। इसके उपरांत अदालती गतिविधियां भी समाप्त हो गई परंतु यात्रियों के लिए इस किले के द्वार एक विश्राम गृह के रूप में खुले रखे गए। भयंकर भूकंप के झटके सहने की तकनीक पर निर्मित नग्गर किले में 1905 में आए विनाशकारी भूकंप के कोप को भी सहन किया है। नग्गर किला पत्थर द्वारा निर्मित एक बेजोड़ हवेली है। काठ कुणी और पत्थर लकड़ी की संयुक्त चिनाई से निर्मित इस किले के प्रांगण में एक छोटा सा ऐतिहासिक मंदिर भी है। यह समस्त देवी -देवताओं के धार्मिक स्थल के रूप में पूजा जाता है। यही मंदिर होटल कैसल की सुंदरता को एक नया आयाम देता है। कै सल को हिमाचल सरकार द्वारा पर्यटन विकास निगम को सौंपा गया। धरोहर इमारत के विरासती ढांचे से छेड़-छाड़ किए बिना संपूर्ण नवीनीकरण किया गया है। इसी में एक लघु संग्रहालय भी है जो देखने लायक है। इस कैसल की हिस्ट्री भी कैसल के प्रांगण में लिखी गई है। इसीलिए विशाल धरोहर नग्गर कैसल को विश्व हैरिटेज विलेज व कुल्लू की राजधानी से भी जाना जाता है।
-विक्रम जीत
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